Friday 5 August 2011

विरासत

INHERITANCE

प्रश्नः इस्लामी कानून के अनुसार विरासत की धन-सम्पत्ति में स्त्री का हिस्सा पुरूष की अपेक्षा आधा क्यों है?

उत्तरः MoneyBags
पवित्र क़ुरआन में विरासत की चर्चा

पवित्र क़ुरआन में धन (चल-अचल सम्पत्ति सहित) के हकष्दार उत्तराधिकारियों के बीच बंटवारे के विषय पर बहुत स्पष्ट और विस्तृत मार्गदर्शन किया गया है। विरासत के सम्बन्ध में मार्गदर्शक नियम निम्न वर्णित पवित्र आयतों में बताए गए हैं:

‘‘तुम पर फ़र्ज़ (अनिवार्य कर्तव्य) किया गया है कि जब तुम में से किसी की मृत्यु का समय आए और अपने पीछे माल छोड़ रहा हो, माता पिता और सगे सम्बंधियों के लिए सामान्य ढंग से वसीयत करे। यह कर्तव्य है मुत्‍तकी लोगों (अल्लाह से डरने वालों) पर।’’ (पवित्र क़ुरआन,  सूरह बकरह आयत 180)

‘‘तुम में से जो लोग मृत्यु को प्राप्त हों और अपने पीछे पत्नियाँ छोड़ रहे हों, उनको चाहिए कि अपनी पत्नियों के हकष् में वसीयत कर जाएं कि एक साल तक उन्हें नान-व- नफ़क: (रोटी, कपड़ा इत्यादि) दिया जाए और वे घर से निकाली न जाएं। फिर यदि वे स्वयं ही निकल जाएं तो अपनी ज़ात (व्यक्तिगत रुप में) के मामले में सामान्य ढंग से वे जो कुछ भी करें, इसकी कोई ज़िम्मेदारी तुम पर नहीं है। अल्लाह सब पर ग़ालिब (वर्चस्व प्राप्त) सत्ताधारी हकीम (ज्ञानी) और बुद्धिमान है।’’ (सूरह अल बकरह, आयत 240)

‘‘पुरुषों के लिए उस माल में हिस्सा है जो माँ-बाप और निकटवर्ती रिश्तेदारों ने छोड़ा हो और औरतों के लिए भी उस माल में हिस्सा है जो माँ-बाप और निकटवर्ती रिश्तेदारों ने छोड़ा हो। चाहे थोड़ा हो या बहुत। और यह हिस्सा (अल्लाह की तरफ़ से) मुकष्र्रर है। और जब बंटवारे के अवसर पर परिवार के लोग यतीम (अनाथ) और मिस्कीन (दरिद्र, दीन-हीन) आएं तो उस माल से उन्हें भी कुछ दो और उनके साथ भलेमानुसों की सी बात करो। लोगों को इस बात का ख़याल करके डरना चाहिए कि यदि वे स्वयं अपने पीछे बेबस संतान छोड़ते तो मारते समय उन्हें अपने बच्चों के हकष् में कैसी कुछ आशंकाएं होतीं, अतः चाहिए कि वे अल्लाह से डरें और सत्यता की बात करें।’’ (सूरह अन्-निसा, आयत 7 से 9)



‘‘हे लोगो जो ईमान लाए हो, तुम्हारे लिए यह हलाल नहीं है कि ज़बरदस्ती औरतों के वारिस बन बैठो, और न यह हलाल है कि उन्हें तंग करके उस मेहर का कुछ हिस्सा उड़ा लेने का प्रयास करो जो तुम उन्हें दे चुके हो। हाँ यदि वह कोई स्पष्ट बदचलनी करें (तो अवश्य तुम्हें तंग करने का हकष् है) उनके साथ भले तरीकष्े से ज़िन्दगी बसर करो। अगर वह तुम्हें नापसन्द हों तो हो सकता है कि एक चीज़ तुम्हें पसन्द न हो मगर अल्लाह ने उसी में बहुत कुछ भलाई रख दी हो।’’ (सूरह अन्-निसा, आयत 19)

‘‘और हमने उस तरके (छोड़ी हुई धन-सम्पत्ति) के हकष्दार मुकष्र्रर कर दिये हैं जो माता-पिता और कष्रीबी रिश्तेदार छोड़ें। अब रहे वे लोग जिनसे तुम्हारी वचनबद्धता हो तो उनका हिस्सा उन्हें दो। निश्चय ही अल्लाह हर वस्तु पर निगहबान है।’’ (सूरह अन्-निसा, आयत 33)

विरासत में निकटतम रिश्तेदारों का विशेष हिस्सा पवित्र क़ुरआन में तीन आयतें ऐसी हैं जो बड़े सम्पूर्ण ढंग से विरासत में निकटतम सम्बंधियों के हिस्से पर रौशनी डालती हैं:

‘‘तुम्हारी संतान के बारे में अल्लाह तुम्हें निर्देश देता है कि पुरुष का हिस्सा दो स्त्रियों के बराबर है। यदि (मृतक के उत्तराधिकारी) दो से अधिक लड़कियाँ हों तो उन्हें तरके का दो तिहाई दिया जाए और अगर एक ही लड़की उत्तराधिकारी हो तो आधा तरका उसका है। यदि मृतक संतान वाला हो तो उसके माता-पिता में से प्रत्येक को तरके का छठवाँ भाग मिलना चाहिए। यदि वह संतानहीन हो और माता-पिता ही उसके वारिस हों तो माता को तीसरा भाग दिया जाए। और यदि मृतक के भाई-बहन भी हों तो माँ छठे भाग की हकष्दार होगी (यह सब हिस्से उस समय निकाले जाएंगे) जबकि वसीयत जो मृतक ने की हो पूरी कर दी जाए और क़र्ज़ जो उस पर हो अदा कर दिया जाए। तुम नहीं जानते कि तुम्हारे माँ-बाप और तुम्हारी संतान में से कौन लाभ की दृष्टि से तुम्हें अत्याधिक निकटतम है, यह हिस्से अल्लाह ने निधार्रित कर दिये हैं और अल्लाह सारी मस्लेहतों को जानने वाला है। और तुम्हारी पत्नियों ने जो कुछ छोड़ा हो उसका आधा तुम्हें मिलेगा। यदि वह संतानहीन हों, अन्यथा संतान होने की स्थिति में तरके का एक चैथाई हिस्सा तुम्हारा है, जबकि वसीयत जो उन्होंने की हो पूरी कर दी जाए और क़र्ज़ जो उन्होंने छोड़ा हो अदा कर दिया जाए। और वह तुम्हारे तरके में से चैथाई की हकष्दार होंगी। यदि तुम संतानहीन हो, अन्यथा संतान होने की स्थिति में उनका हिस्सा आठवाँ होगा। इसके पश्चात कि जो वसीयत तुमने की हो पूरी कर दी जाए और वह क़र्ज़ जो तुमने छोड़ा हो अदा कर दिया जाए। और अगर वह पुरुष अथवा स्त्री (जिसके द्वारा छोड़ी गई धन-सम्पति का वितरण होना है) संतानहीन हो और उसके माता-पिता जीवित न हों परन्तु उसका एक भाई अथवा एक बहन मौजूद हो तो भाई और बहन प्रत्येक को छठा भाग मिलेगा और भाई बहन एक से ज़्यादा हों तो कुछ तरके के एक तिहाई में सभी भागीदार होंगे। जबकि वसीयत जो की गई हो पूरी कर दी जाए और क़र्ज़ जो मृतक ने छोड़ा हो अदा कर दिया जाए। बशर्ते कि वह हानिकारक न हो। यह आदेश है अल्लाह की ओर से और अल्लाह ज्ञानवान, दृष्टिवान एवं विनम्र है।’’ (सूरह अन्-निसा, आयत 11 से 12 )


‘‘हे नबी! लोग तुम से कलालः (वह मृतक जिसका पिता हो न पुत्र) के बारे में में फ़तवा पूछते हैं, कहो अल्लाह तुम्हें फ़तवा देता है। यदि कोई व्यक्ति संतानहीन मर जए और उसकी एक बहन हो तो वह उसके तरके में से आधा पाएगी और यदि बहन संतानहीन मरे तो भाई उसका उत्तराधिकारी होगा। यदि मृतक की उत्तराधिकारी दो बहनें हों तो वे तरके में दो तिहाई की हक़दार होंगी और अगर कई बहन भाई हों तो स्त्रियों का इकहरा और पुरुषों का दोहरा हिस्सा होगा तुम्हारे लिये अल्लाह आदेशों की व्याख्या करता है ताकि तुम भटकते न फिरो और अल्लाह हर चीज़ का ज्ञान रखता है।’’ (सूरह अन्-निसा, आयत 176)

कुछ अवसरों पर तरके में स्त्री का हिस्सा अपने समकक्ष पुरुष से अधिक होता है
अधिकांक्ष परिस्थतियों में एक स्त्री को विरासत में पुरुष की अपेक्षा आधा भाग मिलता है। किन्तु हमेशा ऐसा नहीं होता। यदि मृतक कोई सगा बुजष्ुर्ग (माता-पिता इत्यादि अथवा सगे उत्ताराधिकारी पुत्र, पुत्री आदि) न हों परन्तु उसके ऐसे सौतेले भाई-बहन हों, माता की ओर से सगे और पिता की ओर से सौतेले हों तो ऐसे दो बहन-भाई में से प्रत्येक को तरके का छठा भाग मिलेगा।

यदि मृतक के बच्चें न हों तो उसके माँ-बाप अर्थात माँ और बाप में से प्रत्येक को तरके का छठा भाग मिलेगा। कुछ स्थितियों में स्त्री को तरके में पुरुष से दोगुना हिस्सा मिलता है। यदि मृतक कोई स्त्री हो जिससे बच्चे न हों और उसका कोई भाई बहन भी न हो जबकि उसके निकटतम सम्बंधियों में उसका पति, माँ और बाप रह गए हों (ऐसी स्थिति में) उस स्त्री के पति को स्त्री के तरके में आधा भाग मिलेगा) माता को एक तिहाई, जबकि पिता को शेष का छठा भाग मिलेगा। देखिए कि इस मामले में स्त्री की माता का हिस्सा उसके पिता से दोगुना होगा।


तरके में स्त्री का सामान्य हिस्सा अपने समकक्ष पुरुष से आधा होता है

एक सामान्य नियम के रूप में यह सच है कि अधिकांश मामलों में स्त्री का तरके में हिस्सा पुरुष से आधा होता है, जैसेः

1. विरासत में पुत्री का हिस्सा पुत्र से आधा होता है।

2. यदि मृतक की संतान हो तो पत्नी को आठवाँ और पति को चैथाई हिस्सा मिलेगा।

3. यदि मृतक संतानहीन हो तो पत्नी को चैथाई और पति को आधा हिस्सा मिलेगा।

4. यदि मृतक का कोई (सगा) बुजष्ुर्ग अथवा उत्तराधिकारी न हो तो उसकी बहन को (उसके) भाई के मुकषबले में आधा हिस्सा मिलेगा।
पति को विरासत में दोगुना हिस्सा इसलिए मिलता है कि वह परिवार के भरण पोषण का ज़िम्मेदार है इस्लाम में स्त्री पर जीवनोपार्जन की कोई ज़िम्मेदारी नहीं है। जबकि परिवार की आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ती का दायित्व पुरुष पर डाला गया है। विवाह से पूर्व कन्या के रहने सहने, आवागमन, भोजन वस्त्र तथा समस्त आर्थिक आवश्यकताओं का पूरा करना उसके पिता अथवा भाई (या भाईयों) का कर्तव्य है। विवाहोपरांत स्त्री की यह समस्त आवश्यकताएं पूरी करने का दायित्व उसके पति अथवा पुत्र (पुत्रों) पर लागू होता है। अपने परिवार की समस्त आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए इस्लाम ने पूरी तरह पुरुष को ज़िम्मेदार ठहराया है। इस दायित्व के निर्वाह के कारण से इस्लाम में विरासत में पुरुष का हिस्सा स्त्री से दोगुना निश्चित किया गया है। उदाहरणतः यदि कोई पुरुष तरके में डेढ़ लाख रुपए छोड़ता है और उसके एक बेटी और एक बेटा है तो उसमें से 50 हज़ार बेटी को और एक लाख रुपए बेटे को मिलेंगे।

देखने में यह हिस्सा ज़्यादा लगता है परन्तु बेटे पर घर-परिवार की ज़िम्मेदारी भी है जिन्हें पूरा करने के लिए (स्वाभाविक रूप से) एक लाख में से 80 हज़ार रूपए ख़र्च करने पड़ सकते हैं। अर्थात विरासत में उसका हिस्सा वास्तव में 20 हज़ार के लगभग ही रहेगा। दूसरी ओर यदि लड़की को 50 हज़ार रूपए मिले हैं लेकिन उसपर किसी प्रकार की ज़िम्मेदारी नहीं है अतः वह समस्त राशि उसके पास बची रहेेगी। आपके विचार में क्या चीज़ बेहतर है। तरके में एक लाख लेकर 80 हज़ार ख़र्च कर देना या 50 हज़ार लेकर पूरी राशि बचा लेना?

 

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